मानसिक रोगो की पृष्ठभूमि एवं निदानात्मक संगीत चिकित्सा
Main Author: | Dr. Suchi Gupta |
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Format: | Article eJournal |
Terbitan: |
, 2018
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/1167692 |
Daftar Isi:
- मनुष्य ईश्वर द्वारा निर्मित श्रेष्ठतम् रचना है। जन्मोपरान्त में ही वह सक्रिय मस्तिष्क का धनी होता है। यहां तक की निद्रा अवस्था में भी उसका मस्तिष्क क्रियाशील रहता है। मस्तिष्क की प्रवृति अत्यन्त संवेदनशील होती है क्योंकि वह इन्द्रियों के वशीभूत होकर कार्य करता है। बाहरी वातावरण एवं आन्तरिक कारण उसके व्यवहार को प्रभावित करते है। इन कारको की अधिकता अतिसंवेदनशील, मानसिक अवस्था, मनोविकारो के लिए उत्तरदायी होती है। जैसा कि पूर्व कथित है कि मनोविज्ञानी शारीरिक दोष, जैविक कारण, सामाजिक कारण, मनोरोगो के लिए उत्तरदायी मानते है। परन्तु कभी-कभी मनोविकार अत्यन्त तीव्र गति से मनुष्य के मन मस्तिष्क पर अतिक्रमण करते है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य में मानसिक रोगो की पहचान लक्ष्णो के आधार पर तुरन्त हो जाए तो उसका निदान संभव है। निदानात्मक चिकित्सा पद्धति मनोरोगियों के लिए वरदान स्वरुप सिद्ध हुई है। यदि रोगी अपनी मानसिक स्थिति को बता पाने में सक्षम है और उस विकृत अवस्था का कारण स्पष्ट है तो निश्चित की संगीत चिकित्सा मनोभावो को नियंत्रित करके उपचार हेतु प्रयोग की जाती है।