र ंगा े का समाज पर प्रभाव
Main Author: | डा ॅ. साधना चा ैहान |
---|---|
Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
|
Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/890579 |
Daftar Isi:
- प ्रकृति आ ैर मनुष्य का रिश्ता चिंतन के प ्राचीन छोर से वर्तमान तक दर्शन, कला और साहित्यिक विमर्श का केन्द्र रहा ह ै। अतः रंग भी इस से अछूते नही ं ह ै।’’सूरज की पहली किरण जब किसी वस्तु पर पड़ती ह ै तब वह वस्तु रंगमय हा े जाती ह ै। का ेई रंग आपको इस तरह छूता है कि आपकी कल्पना में र्कइ ख्वाब जागने लगते ह ै ं। कभी कोई रंग आपका े इस तरह मोहित कर लेता ह ै कि आप उसके साथ लय मिलाते हुए जीवन का छंद जीने लगते ह ै ं। आ ैर कभी कोई रंग आपकी स्मृति में ठहर आपको प ्रफुल्लित रखता ह ै।’’1 चित्र मानवीय मन को अभिव्यक्त करने का एक जरिया है। ’’मालवा की परिधि में पूर्वोक्त शिलाचित्र भीम ब ेटका में विविध रुप में प ्राप्त हा ेते ह ैं। गेरु, हिड़मची और मेगेनीच क े वहां से प ्राप्त टुकड़ों से ज्ञात हा ेता है कि उनसे निर्मित रंगा े से वहा ं चित्र बनाये जाते थे।’’2 एक चित्रकृति अपने में समाहित सा ैंदर्य को रंगा े से परिपूर्ण करती है। चित्रों क े संदर्भ में आ ैर उनसे प ्रकट हा ेने वाली अनुभूति, श्र ृंगारिकता, स्मृति, रहस्य आ ैर इन सब से निर्मित विन्यास क े क ेन्द्र में रंगा े की विपुल सृष्टि का समाहन ही लक्षित होता ह ै। का ेई भी चित्रकृति रंगा ें क े अंतर्सम्बन्ध की ब ुनियाद पर आधारित ह ै।’’