स ंगीत का सामाजिक सरा ेकार

Main Author: अवधेश प ्रताप सिंह तोमर
Format: Article Journal
Terbitan: , 2017
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  • व्यक्ति की रचनात्मक प ्रतिमा एवं सृजनशीलता का परिणाम ललित कलाआ ंे का उदय ह ै। जनचित्तरंजन एवं समय बांटने क े उद्वेश्य से रची गयी नाट्य, संगीत एवं दृष्य सामग्रियां (चित्र एव ं शिल्प) आज अन्य उद्द ेश्या े ं की पूर्ति भी कर रही ह ै। जन जागरण आ ैर सामाजिक चेतना का प्रसार एक ए ेसा कार्य है जा े संगीत क े मध्य से प ्राचीन काल से संपादित हा ेता आया है आ ैर आज भी जारी ह ै। व ैदिक ऋचाओं क े गायन क े माध्यम से अनेक सामाजिक उद्देश्या े ं एवं लक्ष्या ें का े प ्रसारित किया गया जैसे नदियांे की प ्रश ंसा करके उनक े संरक्षण एवं सुचिता पर ध्यान आकर्षित कराया गया उन्हंे अन्न दात्री मानकर पूजनीय माना गया। अतारिष ुर्भरता गव्यवः समभक्त विप ्रः सुमतिं नदीनां। प ्र पिन्वध्वमिशयन्तीः सुराधा आ वक्षणाः पृणघ्वं यात ष्षीभ ं।। ऋक् 3/12 राम-चरित्र का मंचन एवं गायन हमें मर्या दा पुरूषोत्तम के चरित्र से कुछ ग्रहण करने के उद्वेश्य से ही किया जाता रहा है, भले आज ध्वनि विस्तारक यंत्रा ें द्वारा अपनी सामाजिक प ्रतिष्ठा बढ़ाने क े अतिरिक्त और अन्य लाभ कोई भी ग्रहण नहीं करता। देश-काल-परिस्थिति अनुसार नाटका ें, स ंगीत रचनाओं एव ं षिल्प का उद्देश्य बदलता रहा है। समाज में सत्कर्मो से मा ेक्ष प ्राप्ति क े लक्ष्य का े मनीषियांे ने धर्म से जा ेड़कर प ्रभावकारी बनाया। कला जीवन में अत्यंत उपया ेगी ह ै उसकी सार्थकता समाज, राष्ट्र एवं विश्व की उन्नति से पहले व्यक्तिगत चारित्रिक उन्नयन में ह ै जिससे पूर्वाेक्त सभी का स्वतः विकास सुनिश्चित ह ै।