भारतीय षास्त्रीय संगीत में विभिन्न वैज्ञानिक आयामा ें का प्रभाव
Main Authors: | डा ॅ. चेतना बनावत, क ु. अंजलि गिलोत्रा |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/886982 |
Daftar Isi:
- भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा विष्व में प ्राचीनतम् तथा अनवरत् विकासशील रही है। यह उस व ृक्ष की भा ंति है, जिसमें ऋतुकालीन प्रभाव के फलस्वरूप कभी पतझड़ तो कभी नवका ेपल आते रहे, किन्तु मूल यथावत् ही रहा ह ै। शास्त्रीय संगीत की इस सुदीर्घ परम्परा के दर्श न व ैदिक काल में ही हो जाते ह ै ं, किन्तु विभिन्न समकालीन परिवर्तना ें ने इसकी दशा व दिशा में परिवर्तन ला दिया ह ै, फलतः संगीत के क्षेत्र में काफी गुणात्मक प्रगति हुई है। आज के युग का े विज्ञान क े नित नवीन आविष्कारों की देन प ्राप्त हो रही ह ै, जिससे हम सभी व्यवहारिक रूप से परिचित ही हैं। इन नवीन व ैज्ञानिक सर्जनाआ ें से हमारा सांगीतिक कला पक्ष भी अछूता नहीं रह सका। आज तकनीकी व प्रा ैद्योगिकी के विकास से संगीत जगत् का े सुदृढ़ आधार मिला है। संगीत की आदि शाखा शास्त्रीय संगीत क े संरक्षण, संवर्धन एवं निरन्तर प ्रचार-प ्रसार में यह तकनीकी जगत् सहायक सिद्ध ह ुआ है। विभिन्न इलेक्ट्राॅनिक सा ंगीतिक वाद्यों, व ैज्ञानिक उपकरणों एव ं सूचना प ्रा ैद्या ेगिकी ने शास्त्रीय संगीत के शिक्षण, श्रवण एवं संग्रहण जैसी नवीन सम्भावनाएं भी प्रदान कर शास्त्रीय स ंगीत को प्रभावित किया एवं इसक े संरक्षण-संवर्धन में अहम् भ ूमिका निभाते हुए इसे चिरस्थायी बनाने में अपना विशेष या ेगदान भी दे रह े हैं।