भारत में स ंगीत क े बढ़ते ह ुए कदम
Main Author: | डा ॅ. नर ेन्द्र कुमार ओझा |
---|---|
Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
|
Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/886970 |
Daftar Isi:
- भारत की सभ्यता आ ैर संस्कृति ए ेतिहासिक ह ै। भारत में संगीत विषयक ज्ञान कोई आज का नहीं ह ै, यह बहुत पुराना ह ै। इतिहास में आज भी कई उच्च श्र ेणी क े कलाकार अपना स्थान बना चुके ह ै जैसे- भास्कर बुवा, मियाॅं जान, अब्दुल करीम खाॅ, फ ैयाज खाॅ, ह ैदर खाॅ, वजीर खाॅ, हफीज खाॅ, ओंकारनाथ ठाक ुर आदि। भारतीय कला के विकास में क ेन्द्र आ ैर राज्य सरकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, केन्द्रीय सरकार षिक्षा पात्र विद्यार्थियों का े छात्रव ृत्ति दे रही ह ै। इस प ्रकार से विद्यार्थि यों को प्रोत्साहन मिल रहा ह ै। यह स्पष्ट करते ह ुए कि आजादी की लड़ाई में भारतीय संग्रीत का अपना विषिष्ट स्थान रहा है, संगीत ने ही भारतीय युवाआ ें में साहस एवं बहादुरी का पाठ सिखाया और यही कारण ह ै कि हम ब्रिट्रिस साम्राज्यवादी व्यवस्था की ज ंजीरों से युक्त हो सक ें। संगीत का े सर्व साधारण में लोकपि ्रय बनाने और उसका विस्तृत रूप से प्रचार एवं प ्रसार करने में श्री विष्ण ु दिगम्बर पलुस्कर आ ैर श्री विष्णु नारायण भातखंडेजी ने प ्रष ंसनीय कार्य किया। भारत की आजादी के बाद हमारी सरकार ने इस कला की उन्नति में जा े सक्रिय भाग लिया, उसका प ्रत्यक्ष उदाहरण अखिल भारतीय आकाषवाणी का संगीत-कार्यक्रम ह ै। आकाषवाणी ने शास्त्रीय संगीत को लोकपि ्रय बनाने क े लिए हर तरह से प ्रयत्न किये आ ैर संगीत में विभिन्न प ्रकार के प ्रयोग किए है ं। आकाषवाणी के बाद दूरदर्ष न विभिन्न चैनलों, इन्टरनेट आदि संचार साधना ें ने समय आ ैर परिस्थितियों क े बदलते ह ुए परिव ेष तथा व ैज्ञानिक संसाधनों क े बढ़ते ह ुए कदम ने संगीत क े क्षेत्र में भी तीव्र विकास हुआ ह ै। सामान्य षिक्षा क े साथ ही संगीत की षिक्षा पाना आसान हा े गया ह ै, पहले सब कुछ छोड़कर किसी गुरू के पास रहकर कठा ेर परिश्रम से संगीत कला आत्मसात् करनी पड़ती थी, अब वह कठिनाई नही ं रही ह ै। षिक्षा का दृष्टिका ेण बदलने से अब गुरू परम्परा समाप्त हो रही ह ै उसका स्थान विद्यालयों एवं पाठ्य-प ुस्तका ें ने ले लिया ह ै। परम्परागत समय में गुरू, षिष्य का े सुबह उठाकर उससे स्वर-साधना करवाना था फिर एक-एक राग को पक्का करने में र्कइ महीने लग जाते थे आज कुछ ही दिनों में संगीत स्कूला ें में विद्यार्थी दस-बारह राग जान जाते ह ै, यही दूरदर्ष न, इन्टरनेट के कारण स ंभव हो सका है।