राजस्थानी ला ेक संगीत का समाज पर प्रभाव
Main Author: | डा ॅ. निषा ज ैन |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/886822 |
Daftar Isi:
- भारत के प ्रदेषा ें में राजस्थान अपनी सभ्यता एव ं संस्कृति की मौलिकता क े कारण सर्वदा से पर्यटक, संगीतकार, षिल्पकार आदि के लिए का ैतूहल का विषय रहा ह ै। राजस्थान की संस्कृति खान-पान, वेषभूषा, नृत्य, संगीत एवं लोक गीतों क े लिए प ्रत्येक समय में विषिष्ट बनी र्ह ुइ ह ै। राजस्थान में पल्लवित लोक संस्कृति में क्षेत्रीय रहन-सहन, खान-पान व लोकगीतों का खजाना छिपा ह ुआ ह ै। यहाँ के रीति-रिवाज रहन-सहन, वेषभूषा, चटकीले रंग, तीज त्या ैहार, मेले, पर्व में पहनावा तथा सिर पर साफे ब ंध े हुए प ुरूष एवं घ ेरदार लहँगे में महिला षहरवासिया ें क े आकर्ष ण का केन्द्र हा ेती ह ै। राजस्थानी लोक संगीत सभी विषिष्ट अवसरों पर गाए एव ं बजाये जाते ह ैं। राजस्थानी गीतों पर वहीं की रंगीन व ेषभूषा में नृत्य नाटिकाएँ दर्ष कों का मन मोह लेती ह ैं। राजस्थानी लोक संगीत - लोकगीत जनमानस क े स्वाभाविक उद्बोधनों का नैसर्गिक प्रस्फुटन ह ै। कवि रविन्द्र ने लोक गीतों का े संस्कृति का सुखद संदेष ले जाने वाली कला कहा ह ै। राजस्थानी ला ेक संगीत उन्मुक्त तथा जीवन की करवटों पर आधारित ह ै। इनमें मानव हृदय की प्राकृत भावना निहित ह ै। यहाँ के लोक संगीत में व्यक्तिगत क े स्थान पर सामूहिक प्रवृति अधिक व्याप्त है। राजस्थानी ला ेक संगीत एवं गीत में मानव जीवन क े उल्लास, उमंग, करूणा, रूदन एवं सुख-दुख की कहानियां छिपी ह ुई ह ै। राजस्थानी लोक संगीत का स्वरूप बह ुत विस्तृत है। एक तरफ जहाँ लोक गीतों म ें जीवन के प ्रमुख संस्कारों, पर्वोत्सवों, धार्मिक अनुष्ठानों, ऋतुओं, व्यवसाया ें अथवा आजीविका क े साधनों आ ैर उनसे उत्पन्न मानसिक व भा ैतिक प्रतिक्रियाआ ें का चित्रण ह ुआ है वहीं दूसरी तरफ पारिवारिक संब ंधा ें का स्वरूप एवं दिषा बोध भी इनमें क ेंद्रित ह ुआ ह ै इसके व ृहत स्वरूप में समाज के विवाह, आचार-विचार, नीति तथा जीवन दर्ष न से संब ंधित सामग्री भी निहित ह ै। ये ला ेक गीत सहजता के कारण सभी जगह स्वीकृत हा ेते हैं।