गायन स् ंागीत में नवाचार म ंच की आधुनिक तकनीक
Main Author: | प ्रदीप कुमार चा ेपडा |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/885871 |
Daftar Isi:
- स ंगीत एक ऐसा माध्यम ह ै, जो साधक आ ैर श्रोता दोनों का े एक सम्मोहन मंे बाँध कर रखता ह ै, प ंरन्तु मन ुष्य की ध्वनि की कुछ सीमायंे होती ह ै, आ ैर जहाँ तक उसकी ध्वनि प ्राकृतिक रूप से जाती है, वहाँ तक ही वह असरदार सिध्द होती ह ै, इसलिए रिकाॅर्डिंग को मृत संगीत कहा जाता है । प ुराने समय मे संगीत में जो, मंच हा ेता था उसकी कुछ सीमाये ं थी, उससे सिर्फ उतने ही लोग लाभ उठा पाते थ े, जहाँ तक साधक (संगीतकार/ वादक) की ध्वनि पहुॅंचें । परन्तु यह बात सही ह ै, कि उस समय मनुष्य की शक्ति (भा ैतिक रूप से ) आज क े मनुष्य की तुलना में ज्यादा होती थी । इसके प ्रमाण रामायण, महाभारत आदि प्राचीन ग्र ंथो में देखने का े मिलते ह ै । तो यह सीधी सी बात ह ै कि उस समय क े मनुष्य की आवाज भी आज क े मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा असरदार होती हा ेगी । पर उसकी भी सीमायंे थी । पर आज जहाँ विज्ञान ने इतनी उन्नति की ह ै, वही आज का मंच भी बहुत प ्रभावशाली बना है, जिसमें उपयेाग हा ेनेवाले आधुनिक यंत्र अत्यधिक शक्तिशाली ह ै, कलाकारांे का े मिलने वाले यंत्र इतने प ्रभावशाली हा ेते ह ैं, कि वह उनके द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों को श्र ̈ताअ ̈ तक व ैसे का े वैसा पह ुॅचाने में सक्षम ह ै । क्या ेंकि भारतीय शास्त्रीय संगीत बह ुत ही सुक्ष्म गुणा ें से युक्त है। इसमें हा ेने वाले काम भी उतना ही सूक्ष्म ह ै। जिसके लिए साधका ें को अपने द्वारा की जानेवाली क्रिया का सही रूप से दर्श न होना जरूरी है, उसक े लिए आज विज्ञान ने र्कइ उत्तम किस्म की मशीनें प ्रदान की ह ै ।