''किशनगढ़ श्©ली का पर्यावरण-प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक परम्परा''
Main Author: | क ुमक ुम भारद्वाज |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/882061 |
Daftar Isi:
- ‘‘राजस्थान की किशनगढ ़ श्©ली के चित्र्ा प्रकृति क ̈ संरक्षित करके पर्यावरण जागरुकता क ̈ आज के परिव ेश में प्रदर्शित करत े हैं। चित्र्ा ̈ ं में वनस्पति, जल, वायु तीन ̈ं पर्यावरणीय घटक प्रचुर मात्र्ाा में चित्र्ाित ह ैं। पर्यावरण में प्रकृति चित्र्ाण के साथ अध्यात्म दर्शन की सांस्कृतिक परम्परा क ̈ ज ̈ड ़ा गया ह ै। हरियालीमय सुरम्य वातावरण चित्र्ा ̈ं मंे प्रकृति चित्र्ाण की सांस्कृतिक थाती पर्यावरण प्रद ूषित ह ̈न े से बचान े का सन्द ेश जन-जन तक पहुँचाती प्रतीत ह ̈ती है, ज ̈ एक सकारात्मक प्रयास है। पर्यावरण का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड के न ैतिक एव ं जैविक व्यवस्था से ह ै, जिसके अंतर्गत समस्त जीवधारी ह ̈त े ह ैं। पर्यावरण में जीवधारी रहत े हैं, बढ ़त े हैं अ©र पनपत े हैं; अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तिय ̈ं क ̈ विकसित करत े हैं। मन ुष्य पर्यावरण का ही एक भाग ह ै, उससे पृथक उसका क ̈ई भी अस्तित्व नहीं है। वायु, जल, भ ूमि, वनस्पति, पेड ़-प©ध् ̈, पशु, मानव सब मिलाकर पर्यावरण बनात े हैं। ‘‘प्रकृति मंे हमें ज ̈ कुछ दिखाई द ेता ह ै- वायु, जल, मिट्टी, वनस्पति तथा प्राणी सभी सम्मिलित रूप से पर्यावरण की रचना करत े है ं। अतः पारिस्थितिकी पर्यावरण अध्ययन का एक विज्ञान है।1आधुनिक काल में जब से हमन े आध्यात्मिक मान्यताअ ̈ं का त्याग किया है तथा विज्ञान अ©र प्र©द्य ̈गिकी क ̈ ही मानव प्रगति का कारण मान लिया अ©र प्राकृतिक संसाधन ̈ं का भरप ूर द ̈हन करना प्रार ंभ किया तभी हमारा पर्यावरण जीवन के लिए संकट प ूर्ण ह ̈ गया है।2 विकास स े विनाश का यह मंजर केवल प्रकृति के अत्यधिक द ̈हन के कारण हुआ ह ै।