बदलता पर्या वरण और मानव-व्यवहार

Main Author: अर्च ना मेहरा
Format: Article Journal
Terbitan: , 2017
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Online Access: https://zenodo.org/record/838912
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  • मानव और पर्या वरण के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रायः हम किसी बुर े कार्य के लिए व्यक्ति को दोष द ेत े ह ै किन्त ु सच्चाई यह है कि उसम ें पर्या वरण भी उतना ही दोषी होता ह ै, अतः पर्या वरण की क्षति के कारण आज मानव का अस्तित्व संकट में पड ़ गया है। अब पर्या वरण चेतना को जगाना अतिआवष्यक हा े गया ह ै क्योंकि पर्यावरण भौतिक रूप मे ं नहीं सामाजिक रूप मंे भी मानव समाज का े घेर े हुए है। किसी व्यक्ति के व्यवहार को द ेखकर उसके पर्या वरण का सहज अन ुमान लगाया जा सकता है। इसमें प्राकृतिक द ृष्य, वन उपवन, नदी, पर्वत, जीव जन्त ु के साथ-साथ जलवाय ु और जनसंख्या इन सबकी महत्वप ूर्ण भूमिका होती ह ै। इनमें जब भी असंत ुलन होता ह ै, मानव व्यवहार भी असंत ुलित हा ेन े लगता है। यह वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके है। अतः पर्या वरण और मन ुष्य दोनो ं मे ं पारिस्थितिक समन्वय की अत्यधिक आवष्यकता ह ै। इसे बिल्क ुल नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण की सबस े महत्वप ूर्ण भूमिका उद ्दीपन, उत्प ्र ेरण और प्रतिक्रिया के आधारभूत तत्त्व के रूप मे ं है। उदाहरण के लिए प्रायः गाँवों के खुल े हर े भर े वातावरण म ें लोग प्रसन्न, निद्र्व न्द्व और कम पर ेषान रहत े ह ै वहाँ लोगों में निराषा, ऊब, उदासी, अवसाद, घृणा और नकारात्मकता बह ुत कम मिलेगी किन्त ु शहरो ं म ें सब सुख-सुविधाए ं हा ेन े के बावजूद ये विकृतियाँ और समस्याएँ आम हैं। इसका सीधा कारण वहाँ का पर्यावरण है। पर्यावरण का सम्बन्ध वस्त ुतः व्यक्ति के व्यक्तित्व से है शहरीकरण और औद्योगीकरण न े मानव को कितना विकसित बनाया है यह भी एक बह ुत बड ़ा प ्रष्न है। वह वाहर से विकसित दिखाई द ेता है किन्त ु मनोवृत्तिया े ं से उतना ही पतनषील होता जा रहा ह ै। यह हम सब जानत े है। विन्स्टन चर्चिल न े एक बार कहा था - ’’पहल े हम इमारत ें बनात े है आ ैर फिर इमारत ें हमें बनान े लगती ह ैं’’ व े परिस्थितियाँ बड ़ी भयंकर और विनाषक होती है जब मन ुष्य अपन े अतिस्वार्थ में आकर पर्यावरण को विकृत करता है आ ैर परिणामस्वरूप बड ़ी-बड ़ी प्राकृतिक आपदाओं ज ैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ज्वालाम ुखी का फटना, भूस्खलन ज ैसी घोर प्रलय ंकारी विपत्तियों से नष्टप्राय हो जाता ह ै। उत्तराखण्ड इसका प ्रमाण है। इस पर्यावरणीय असंत ुलन के पीछे नगरीकरण, वन विनाष, भूगर्भ का अतिदोहन आ ैद्योगीकरण, रासायनिक अपशिष्ट द ूषित गैसे ं आदि है जिनके करण भूमण्डल का चेहरा बदलता जा रहा है।