भारतीय साहित्य परंपरा में लोक साहित्य का योगदान

Main Author: Mr. Shesh Karan Charan
Format: Article Journal
Terbitan: , 2021
Online Access: https://zenodo.org/record/5034509
Daftar Isi:
  • मानव को अनुरंजित व आनंदित करने वाले लोक साहित्य की परम्पराएँ प्रत्येक देश व समाज में पाई जाती हैं। लोक साहित्य द्वारा ही युग -युग की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों का परिचय मिलता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक तथा एक समुदाय से दूसरे समुदाय तक पहुंचने वाले लोक साहित्य की परम्पराएँ आज हम तक पहुंची हैं। यही वह कड़ियां हैं, जिन्होंने हमें इतिहास की लुप्त होती हुई कड़ियों को जोड़ने में सहायता पहुंचाई है। अतीत को वर्तमान से जोड़कर उसमें परस्पर समन्वय स्थापित करना इस साहित्य की एक अलग विशेषता रही है, जिसके परिणाम स्वरूप ही यह केवल सांस्कृतिक धरोहर एवं बीते हुए कल की आवाज मात्र न होकर आज भी जीवन्त सर्जना है। आज लोक साहित्य, वाणी है, इसी कारण लोक साहित्य का महत्व शैक्षणिक एवं ऐतिहासिक क्षेत्रों में भी स्वीकार कर उपयोग किया जाता है। लोक साहित्य जनता के कंठों में देश के सभी राज्यों, भाषाओं और छोटी -छोटी बोलियों के रूप में भरा हुआ है। भारतीय लोक साहित्य जनता के व्यापक जनसमूह की सभी मौलिक सर्जनाओं का परिणाम है। यह केवल लोक काव्य या गीतों तक ही न सीमित न होकर जनता के जीवन धर्म, संस्कृति तथा परम्पराओं से भी जुड़ा हुआ है।लोक साहित्य में काव्य कला संस्कृति और दर्शन सभी कुछ एक साथ है। यह शब्द विनिमय का प्रथम कला पूर्ण प्रारम्भ भी है, जिसके द्वारा यंत्र -मंत्र, जंत्र -तंत्र, पहेली, मुहावरे, लोकोक्तियों, लोककथाओं, गीतों आदि के रूप में प्रत्येक जाति अपनी जीवन पद्धति और उसकी प्रणालियों को आगे आने वाली पीढ़ी को सौपती रही है। यही कारण है कि इसमें प्राचीन युग का साहित्य, धर्म दर्शन, विश्वास, संस्कार, कर्मकाण्ड तथा काल आदि सभी कुछ एक साथ प्राप्त होता है और इसी के द्वारा किसी भी देश, समाज व जाति की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा बौद्धिक उन्नति को समझा जा सकता है। कीवर्ड : भारतीय साहित्य परंपरा, लोक साहित्य, ऐताहासिक दृष्टिकोण