समकालीन चित्रकला में किशनचन्द आर्यन जी का योगदान
Main Author: | डॉ. अनन्ता शॉडिल्य |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2019
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/3592281 |
Daftar Isi:
- कला मनीषी, चित्रकार, मूर्तिकार, कला आलोचक, कला इतिहास लेखक, कवि मन के संवेदनशील छोटे से कद के आकर्षक व्यक्तित्व वाले किशनचन्द आर्यन पंजाब के वरिष्ठ कलाकार में से एक हैं कला परिवार में जन्मे आर्यन जी पर शैशवावस्था से ही कला के अंकुर विद्यमान थे। आपका जन्म सन् 1919 ई0 में अमृतसर (पंजाब) में हुआ। सन् 1934 में आपने अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त की और सन् 1937 में एक व्यावसायिक कलाकार के रूप में अपनी जीवन-शैली आरम्भ की। आप स्वयं निर्मित कलाकार हैं जिन्हें कला के क्षेत्र में स्थान बनाने के लिए आरम्भ से ही बहुत संघर्ष करना पड़ा सन् 1941 में लाहौर में आपने अपनी कार्यशाला आरम्भ की आपको भारतीय ऐतिहासिक घटनाओं ने प्रेरित किया जिससे प्रभावित होकर आपने यूरोपियन तकनीक में ऐतिहासिक घटनाओं को यथार्थ शैली में परिदृश्य चित्रित किए आपके आरंभिक चित्र अधिकांश यथार्थ शैली में ही चित्रित है। आर्यन जी ने सन् 1948 से सन् 1952 के मध्य एक विशिष्ट कला संदर्भ वाली “रेखा” नामक पुस्तक लिखी । जिसमें आलेखन और प्रतीकों पर विशेष कार्य किया साथ ही देवनागरी लिपि को लिपि बाध्य करने का विशेष कार्य किया। सन् 1953 से आप अपनी शैली में परिवर्तन लाए और आपने आधुनिक कला शैली में कार्य करना आरम्भ कर दिया सन् 1958 में आरएनजी ने यूरोप और इंग्लैंड की यात्रा भी की साथ ही ईरान, इराक अफगानिस्तान, जॉर्डन आदि क्षेत्रों में भी कला का अध्ययन किया जहां आपने भारतीय कला और संस्कृति की परंपराओं को खोजने का प्रयास किया। आप का मानना है कि बेरूत में भी बहुत कुछ भारतीय संस्कृति की छाप है। सन् 1959 में आर्यन जी ने पुनः अपनी विधा में परिवर्तन किया और इस बार आपने धातु के तारों तथा टुकड़ों व धातु के विभिन्न आकारों द्वारा द्विआयामिक संयोजन तैयार किये जो बड़े ही कलात्मक व भावाभिव्यांजनात्मक है जिसमें उन्मेष नामक कृति में धातु को आग की लपटों के रूप में बड़े कलात्मक ढंग से अभिव्यंजित किया गया है। आपने कोलाज चित्रों में कागज, कपड़ा, धातु के तार, डोरी, माला आदि का प्रयोग बहुत ही सुनियोजित ढंग से किया है जिससे आपके संयोजन बड़े ही संयोजित हैं सन् 1961 में आपने कुछ और नवीन कार्य आरम्भ किया जिसमें लोककला व जनजातीय कला के कला प्रारूपों का संग्रह आरम्भ करना सम्मिलित है। साथ ही पुरातात्विक कलाकृतियों का संग्रह भी आर्यन जी के पास बहुतायत में है।