मांडना में विभिन्न चौक परम्परा
Main Author: | डॉ. कुमकुम भारद्वाज |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2019
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/3584910 |
Daftar Isi:
- मालव भूमि के हिन्दू परिवारों में मांडने बनाने की रीति है। घर, दालान एवं जमीन के खुले वातावरण में किसी पर्व अथवा खुशी के समय खड़िया तथा गेरू के द्वारा बनाई जाने वाली सभी आकृतियों को मांडना कहते है। वैसे मांडने का अर्थ अंकित करना होता है।1 भारत में धार्मिक त्यौहारों की बाहुल्यता है। प्रत्येक त्यौहार पर ग्रांम एवं नगरीय अंचलों में मकानों को साफ-सुथरा करके मांडने बनाने की परम्परा है। ग्रामीण अंचल में तथा शहरों के कच्चे मकानों को लीपण से लीप-पोतकर गृह लक्ष्मी अथवा कन्याओं द्वारा मकान की जमीन पर मांडने (मानव आकृति रहित) बनायी जाती है। ये मांडने गोलाकार या कोणों में बनाये जाते है। प्रायः देखा गया है कि मांडना कोणों के आकार पर बनाये जाते हैं जिसे छोटी उम्र व बढ़ी उम्र की कन्या और महिला भी आसानी से बना सकती है। प्रवीण बड़ी-बूढ़ी महिलाएं पहले प्राथमिक आकार को गेरू की रेखाओं से आंकती है। तत्पश्च्यात सफेद खड़िया मिट्टी से रेखांकन किया जाता है। प्राथमिक रेखाकृति को चारों ओर से, रेखा व अन्य आकारों से भर दिया जाता है। इस कार्य में छोटी-बड़ी सभी महिलाएं मदद देती है। इस प्रकार कला-शिक्षण का कार्य भी सरलता से सम्पन्न हो जाता है।