उच्च शिक्षा में दूरस्थ शिक्षण प्रणाली के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत का शिक्षण–एक समीक्षात्मक विश्लेषण
Main Authors: | द्विजेश उपाध्याय, डॉ0 निर्मला जोशी |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2017
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/345672 |
Daftar Isi:
- किसी भी ललित कला का संबंध मानव के दैहिक, दैविक और भौतिक जगत के उत्कर्ष को व्यक्त करता है। सभ्यता ज्यों-ज्यों अधिकाधिक सभ्य एवं सुसंस्कृत होती जाती है त्यों–त्यों ललित कलाओं का विकास अपने चरम पर पहुंचता जाता है। संगीत, ललित कला का एक प्रमुख अंग है। भारतीय सभ्यता में संगीत का स्थान ललित कला में सर्वोपरि है। महान भारतीय सभ्यता अपने उत्कर्ष काल से ही संगीत की शिक्षा के महत्व को रेखांकित करती आई है। प्राचीन, वैदिक एवं मध्यकाल से आधुनिक काल तक भारतीय शिक्षण प्रणाली संगीत (उसके सभी अंगों यथा गायन, वादन एवं नृत्य) की शिक्षा पर अपना ध्यान केन्द्रित करती रही है। वर्तमान युग में शिक्षण प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन को परिलक्षित किया जा सकता है। शिक्षण प्रणाली में पारम्परिक एवं दूरस्थ शिक्षा जैसे विभाजनों को भी परिलक्षित किया जा सकता है। आज दूरस्थ शिक्षा प्रणाली की लचीली तथा वैकल्पिक व्यवस्था के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। कहना न होगा कि दूरस्थ शिक्षण माध्यम से संगीत की पारम्परिक शिक्षा, गुरू–शिष्य संबंधों, संगीत की आंतरिक शिक्षण पद्धति तथा जीवन में संगीत(उसके सभी अंगों) के महत्व में आए बदलावों को अनुभव किया जा सकता है। वर्तमान युग में जहां एक ओर सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया है वहीं सभी विषयों की शिक्षण पद्धति में भी परिवर्तन को लक्षित किया जा सकता है। दूरस्थ माध्यम से संगीत शिक्षा में विकसित कई नए आयामों का महत्व समझा जा सकता है। तकनीकी के अत्याधुनिक माध्यमों – जैसे ऑडियो–विडियो माध्यम, इंटरनेट, संचार के अत्याधुनिक उपकरण, टेलीविजन एवं रेडियो आदि का उपयोग दूरस्थ माध्यम द्वारा संगीत शिक्षण में सफलतापूर्वक किया जा सकता है । प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य दूरस्थ शिक्षण प्रणाली के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत की उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लाभ, इससे उत्पन्न समस्याओं एवं उनके निराकरण का मार्ग खोजना है ।