प्रकृति चित्रण में रंगों का अद्भुत सामंजस्य-कलाकार रामकुमार

Main Author: रीता शर्मा
Format: Article Journal
Terbitan: , 2019
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  • मानव जीवन के साथ-साथ चित्रकला में वर्ण का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ण मानव जीवन एंव चित्र का सार है जिस प्रकार कविता के लिये शब्द, संगीत के लिये लय तथा काव्य के लिये रस की आवश्यकता हाती है, उसी प्रकार चित्र के लिये रंग का होना अनिवार्य है। रंग के अभाव में चित्र नीरस है इसलिए आदिम गुहावासियों से लेकर आज तक कलाकार रंगा ें का आश्रय लेकर आत्माभिव्यक्ति करता आया है। भारतीय चित्र षडंग में वर्ण-सामांजस्य को वर्णिका भंग नाम से सम्बोधित किया गया है। चित्र में रंगों की यथा सम्भव मिली-जुली भंगिमा वास्तव में वर्णिका भंग है। वस्तुओं में रंगों के माध्यम से ही चित्र के स्वभाव, वतावरण तथा अर्थ का ज्ञान होता है यही कारण है कि चित्र का वर्ण नियोजन करते हुये कलाकार या तो बाह्य यर्थाथ के समान रंगों का प्रयोग करता है या प्रतीकात्मक सादृश्य के आधार पर चित्रों की रचना करता है। यदि आज चित्रकला में रंगों का अध्ययन करे तो यह ज्ञात होता है कि कलाकार अपने अन्र्तमन के अनुरूप रंगों का प्रयोग करता है।