मन्नू भंडारी की कहानिया ें म ें विवाहित महिलाओं के संघर्ष
Main Authors: | क ु ़कांता राधवानी '1, डाॅ ़नीता सिंह 2 |
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Format: | Article Journal |
Terbitan: |
, 2018
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Subjects: | |
Online Access: |
https://zenodo.org/record/1254133 |
Daftar Isi:
- मन्नू भंडारी स्वातंत्रोत्तर काल की समाजधर्मी लेखिका हैं। समाज में आने वाले स्थूल और सूक्ष्म परिवर्त नों को सही धरातल पर पकड़ने की अपूर्व क्षमता उनकी लेखनी में है। परिवर्त नों का प्रभाव सदा ही दोहरा होता है - बाह्य और आत ंरिक। एक प्रभाव व्यक्ति को अंदर से क ुरेदता है तो द ूसरा समाज जीवन को खोखला बना द ेने में बराबर सहयोग पहुँचाता है। ल ेखिका न े दांपत्य-जीवन की समस्याओं को दोहरे स्तर पर उठाया है, उन्होंने अपनी कहानी में नारी-पुरुष परंपरागत स्थूल संबंध में बदलत े संबंध की सूक्ष्म प्रक्रिया का चित्रण किया है। मन्नू भंडारी नारी जीवन में पुरुष क े साथ को अनिवार्य मानती है ल ेकिन वह पति की अंधनुगामी नहीं है और न ही गृहिणी क े दायित्व का निर्वाह करने वाली काम चलाऊ, मशीन मात्र। अपन े सिद्धांतों, आदर्शों की पूर्ति क े लिए वे राजनीतिक जीवन में भी पति की प्रतिद ्वंदिता करती है और पति से अलगाव महसूस हा ेने पर विवाह-विच्छेद या पुनर्विवाह भी करती है। मन्नू भंडारी अपनी कहानी में नारी क े विविध स्वरूपों को रचकर उसके आधुनिक नारी को पूरी सहजता और संजीदगी क े साथ उकेरती है, न की पर ंपराओं से दबी, क ुचली और गुलामी का भार ढोती हुई नारी क े रूप में।